STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

कण कण में प्रभु

कण कण में प्रभु

1 min
11


प्रभु तुम कण कण में हो 

धरती हो या आकाश

मनुष्य हो या जानवर

पेड़ पौधे फूल पत्तियों में

है तेरा निवास।

सजीव हो निर्जीव हो

छोटा हो या बड़ा

कीड़े मकोड़े, कीट पतंगे 

या पत्थर की मूर्ति हो

इस जहाँ के हर कण में 

प्रभु तेरा वास।

धर्मी हो या अधर्मी

चोर हो या चांडाल

बिना भेदभाव का सबसे

रखते सम व्यवहार।

बस! महसूस करने की

जरूरत है,

हर पल ,हर कहीं 

तुम्हारे होने के लिए 

विश्वास की जरूरत है।

क्योंकि हर कण, हर पल, हर जगह

तुम होते हो,

कोई समझे, न समझें,

माने या न माने

कोई श्रद्धा के फूल चढ़ाए

या अविश्वास का आरोप लगाए,

फिर भी तुम 

हर जगह पाये जाते हो,

हर पल, हर क्षण, हर कहीं

अपने होने का कर्तव्य 

सतत, अबाध निभाये जाते हो।

प्रभु! तुम कण कण में हो

अहसास कराये जाते हो।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract