कल परसो
कल परसो
हाथ तो पकड़ूँ, गले मिलूं,
सीने से लग जाऊं, कुछ तो हो।
तुमने कल कहा था कल,
आज कहती हो कल परसों,
चलो छोड़ो।
नहीं-नहीं की भाषा तुम्हारी,
आज-अभी-यही की मेरी बातें,
रोज़ टकराये, रोज़ मिल ही जाएं,
तुम्हारी नींदे और मेरी रातें।
साया तो हाथ पकड़े, गले मिले,
दोपहर और शाम का कुछ तो हो,
तुमने कल कहा था कल,
आज कहती हो कल परसों,
चलो छोड़ो।
इस दीवार पे वक़्त की सुई,
जैसे नाचती, कूदती,
और धीमे से बोलती,
आज नहीं, कल, कल परसों
चलो छोड़ो।

