किया था भरोसा जिसपर रूठ गया
किया था भरोसा जिसपर रूठ गया
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किया था भरोसा जिसपर
वह रूठ गया
आते-आते रास्ते में साथी
साथ छूट गया
मर मिटे थे लब्जों लब्जों
पर उसकी
उस लब्जों से ही लब्ज
रूठ गया
आस्तीन का सांप बन कर
कूट गया
किया था भरोसा जिसपर
रूठ गया
सदियों का प्यार मोहब्बत
टूट गया
जैसे ठोकर लगते ही सीसा
टूट गया
क्या था बदनसीब किस्मत
का रब जाने
अनुठा सफर जिंदगी का
म्यूट किया
जैसे धारा के प्रवाह में बांध
टूट गया
किया था भरोसा जिस पर
रूठ गया।