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VRUSHTI ZAVERI

Abstract Classics

4.8  

VRUSHTI ZAVERI

Abstract Classics

कितनी खास है ये अपनी यारी

कितनी खास है ये अपनी यारी

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आओ सुनाती हूं मेरे मुंह की ज़ुबानी,

मेरे दिल के संदुको में छुपी,

मेरे दोस्तों और उनके किस्सों से

बनी एक अनोखी कहानी।


वो छोटे से किस्से और वो कभी ना

ख़त्म होने वाली बाते,

वो प्यारी सी गालियां और

वो गाल सुजा ने वाली थप्पड़,

मेरे दोस्त ! कितनी खास है ये अपनी यारी।


वो छोटी छोटी बातो में खुशियां धुंडना ,

यूं ही यू एक दूसरे से जगड़ना ,

और फिर एक दूसरे के लिए ज़माने से

लड़ जाने की बाते करना,

मेरे दोस्त ! कितनी खास है ये अपनी यारी।


हमेशा एक दूसरे की टांग खींच ना ,

पर कभी तीसरे के आ जाने से ,

साथ हाथ मिलाकर उसपर चड़ जाना,

 मेरे दोस्त ! कितनी खास है ये अपनी यारी।


वो चाय की किट्ली पर ,

हरोज एक दूसरे का इंतजार करना ,

और फिर लेट आने पर चाय के साथ

समोसा की पार्टी पनिसमेंट देना,

मेरे दोस्त ! कितनी खास है ये अपनी यारी।


अपने दोस्त के मा पापा को खुदका समजकर ,

साथ मिलकर डाट खाना ,

और फिर घर से बाहर निकलकर ,

बेशर्मो की तरह हसना,

मेरे दोस्त ! कितनी खास है ये अपनी यारी।


वो नजाने कितना छोटे से पल है,

और वो अनगिनत लम्हे को,

बेस्ट मेमोरीज फोरेवर का किताब देना है,

फिर उन साब यादों को दिल के स्पेशल फोल्डर में,


फ्रेंड्स फोरेवर नाम से संजोना है,

और फिर याद आने पर ,

मुंह का ताला तोड़कर खुलकर मुस्कुराना ,

मेरे दोस्त ! कितनी खास है ये अपनी यारी।


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