कितने पास कितने दूर
कितने पास कितने दूर
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हमें आभास होता है हमारे हाथों में एक नायाब तोफा आ गया है !
हमारा मन इसके चमत्कारों को देख अचंभित हो गया है।
हम दुर्तगति से एक क्षण में सात समंदर लांघ सकते हैं !
सारी दुनियाँ को अपनी बाहों में भर सकते हैं।
समस्त विश्व की गतिविधिओं का आदान - प्रदान
चुटकी बजाकर करना हम जानते हैं!!
सहस्त्र मित्रों की टोलियाँ हम बनाना जानते हैं !
पर कहाँ फुर्सत किसी को दूर होते जा रहे हैं।
नाम के ये अस्त्र सारे काम कुछ नहीं आ सकते !
याद आते हैं सदा वे पर उनके टाइमलाइन पर घुस नहीं सकते !
सीमित दायरों में रहकर हमें सबको अपना बनाना है !
सभी को प्रेम के धागों से बांध कर युगों तक साथ रखना हैं !