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मेरा लक्ष्य मेरे सपने

Romance

4.3  

मेरा लक्ष्य मेरे सपने

Romance

किसी मोड़ पर फिर

किसी मोड़ पर फिर

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तलाशती हैं मेरी नजरें तुम्हें

अब भी ये‌ सोच कर

कि शायद,

नजरों में तुम्हारी भी

मुझसे मिलने की प्यास होगी


सच्ची न सही झूठी ही मगर

फिर से मिलने की हमारे

थोड़ी तो आस होगी


याद है तुम्हें हमारी 

वो मुलाकात पहली

जब धूप से खुद को बचाने के लिए

अपने सिर पर रखी हुई थी मैंने हथेली


मेरा गली के मोड़ तक आना 

और तुमसे टकराना

हमारी नज़रों का मिल जाना ‌‌

मेरी पलकों का झुक जाना


जैसे ही मैंने नजरें झुकायीं

तुमने‌ बात कुछ यूं आगे बढ़ाई

अपनी ‌‌गिरी हुई छतरी उठाई 

जल्दी से मेरे हाथ थमाई

और कहा ,


ले लिजिए मैडम जी

क्योंकि थोड़ी देर में यहां पर

झमाझम बरसात होगी


तुम्हारा बस इतना कहना हुआ 

और बारिश की बूंदों ने मुझे छुआ


लगता है अब जब जब भी बरसात होगी

हमारी किसी न किसी मोड़ पर फिर 

मुलाकात होगी।


कविता विजयवर्गीय


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