ख्वाहिश
ख्वाहिश
मेरी ख्वाहिशें मुझे अक्सर ठगा करती हैं,
गलत राह पर चलने को मना करती हैं।
मेरी सोच ने कभी शर्मिंदा होने ना दिया ।
करना है तो दिलो पर राज करो।
दिलो को जितने का हुनर हम भी रखते हैं ।
जिंदगी के थपेड़ो ,स्तिम से नही घबराते ,
शायद मेरी आत्मा ईश्वर के काफ़ी करीब है।
पर पहनकर चोला इंसान का कहो - कब..
कितने हरिश्चंद्र और राम बनकर जीते हैं।
कितने सच की शिक्षा जनमभर निभाते हैं,
कितनों का दिल गौतम-सा पक्का है,
जो राज, घरनी, पुत्र छोड़ बुद्ध बन जाते हैं।
बस अब तो इतनी सी ख़्वाहिश बाकी है,
भगवान नहीं,तो कम से कम इंसान रहने दो।
जीवन मे ऐसी पहचान हो,दो रोटी के लिए
लज्जित नही इंसान हो, माना कि पैसा कमाना
जरूरत है जिंदगी की,
हे ईश्वर मेरी कामना है। पेट की भूख जिम्मेदारियों का
बोझ आत्मसम्मान पर हावी ना हो।
इंसान की पहचान सादगी और सहयोग की भावना हो।
करो सम्मान मिले मान
ईश्वर की बंदगी दिलों को मीठे बोल की मिठास से छूकर देखो।