ख्वाब
ख्वाब
कभी हम गुनगुनाते
कभी हम लफ्जो को उतारते हैं !
एक कागज का टुकड़ा
कभी मेरी जिंदगी,
कभी मेरी जिंदगी से फरमाइशें सुनाता !
खुशियाँ चंद लम्हो की,
गम भी चन्द पलों का !
जब कभी भी अपने आप को तलाशूँ
तो खुद को इन्ही जज्बातों के बीच पाऊँ
कभी कोई मेरी निशानी मांगे,
तो मेरा पता "ख्वाब "बता देना !