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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

4.7  

Dr Jogender Singh(jogi)

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ख़ूबसूरत पड़ाव

ख़ूबसूरत पड़ाव

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सपनों से लदी / सजी आँखों की रोशनी,

अब कम पड़ने लगी।

नया कर गुजरने की पर,

चाहत बढ़ने लगी। 


तुतलाने को पीछे छोड़,

शेर सी गरजने वाली आवाज़,

अब थोड़ी लरजने लगी। 

सीना तान चलने वाले को,

अब सहारे की ज़रूरत पड़ने लगी।


सब कुछ हज़म करने का दावा करने वालों के,

खाने में नमक कम, चाय में चीनी कम पड़ने लगी।

एक पड़ाव यह भी, उस सफ़र का जो जारी रहेगा 

साँसों के चुकने के बाद भी।


खट्टा / मीठा, कुछ नमकीन सा,

पचपन का यह ठहराव, खूबसूरत लगने लगा। 


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