खुदगर्ज़
खुदगर्ज़
बिना किसी को अर्ज़ी दिये
थोड़ी सी खुदगर्ज़ी लिये
सिर्फ अपनी मनमर्जी कर,
बिना किसी एतराज के
अपने अलग अंदाज़ में
कुछ चीज़े नज़रअंदाज़ कर,
बिना कोई सवाल किये
ना एक भी मलाल लिये
सिर्फ अपना ख्याल कर,
बिना ज्यादा विचार किये
ज़रा सा एतबार लिये
खुद से प्यार कर,
बिना किसी बोझ के
महज़ अपनी ही मौज में
निकल तू अपनी खोज में,
बिना किसी का इंतज़ार किये
कष्ट रूपी औजार लिये
खुद के साथ वक़्त गुजार ले,
बिना किसी अभिमान के
सिर्फ स्वाभिमान से
खुद का सम्मान रख,
लंबा है यह सफर
कल क्या होगा, यह किसको खबर
पर तुम रखना यह सबर,
हद से ज़्यादा कुछ भी अच्छा नहीं
ना स्वार्थता, ना उदारता
ना नम्रता, ना चतुरता
ना मोहब्बत, ना नफरत
ना राहत, ना मेहनत
ना ज़िम्मेदारी और ना ईमानदारी,
विधी का भी यही विधान
ज़रा सा रहना तुम सावधान
इसका बस एक ही समाधान,
बिना किसी को अर्ज़ी दिये
थोड़ी सी खुदगर्ज़ी लिये
सिर्फ अपनी मनमर्जी कर |
