खोफ करो
खोफ करो
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जिंदगी की जुस्तजू किसे कहूं , कोई नहीं यहां,
मैं न कर सका , ऐसी दोस्ती अब तुम करो।
काम वही अच्छा जो आयतो(कुरान) और यज्ञ(गीता) लिखा है,
अगर कुछ ना कर सको , तो खुदा का खौफ करो।
जिंदगी लाने-ले जाने में इमदाद(मदद) करता है खून,
भुल कर दी उसे जिंदगी समझकर , मेरे खून मुझे माफ करो।
एक ग़ज़ल में कितने किरदार समेट लेता हूं,
मैं तो यही करना चाहता हूं , तुम कुछ और करो।
अगर रिश्ते सजाने में रह गया तो खुद बिखर जाऊंगा एक दिन,
मेरे हक की दुनियादारी भी तुम करो।