तेरे शहर की मासुमियत
तेरे शहर की मासुमियत
तेरे शहर की मासूमियत
हू ब हू तुमसे मिलती है
तेरा चेहेरा हर ईमारतो मे खिला नज़र आता है
यहा की हवाएं दस्तकों पे दस्तकें देती
तुम्हारा ही नाम सुनती हैं
ज़ेहन मेरा क्या क्या खयालो से भर गया
उसमें आखरी खयाल आया की,
अब तुम जा चुकी हो...
मेरी किस्मतों की छांव से
मेरे गीतों के आलाप से
मेरी आंखो मे लेहेराते आसमानो से,
अब तुम दूर जा चुकी हो...
फिर भी मन भटकता हे तेरी यादो के आंगन मे
तेरे शहर आया अजब इत्फाक है
तुम्ही को न बता पाया
ये जुदाई की रस्म भी बड़ा गम दे जाती है
बस शाम होते ही निकल चलूंगा
सिर्फ अपनी खुशबू छोडे जाता हूं
जिन हवाओ मे तुम सांस लेती हो
शायद तुम्हे कोई आहट मिले मेरी क्योंकि,
अब तुम बहुत दूर जा चुकी हो...