कहो प्रिये
कहो प्रिये
कहो प्रिये यह कैसा वसन्त
है ह्रदय सुमन कुम्हलाया सा
बरबस ही रो पड़ते नैन
विरह की अग्नि जल रही
रुखाई तुम्हारी करती है बेचैन
धरती उत्सव मना रही
मेरे मन में है बस एकांत
कहो प्रिये यह कैसा वसन्त।
कहो प्रिये यह कैसा वसन्त
है ह्रदय सुमन कुम्हलाया सा
बरबस ही रो पड़ते नैन
विरह की अग्नि जल रही
रुखाई तुम्हारी करती है बेचैन
धरती उत्सव मना रही
मेरे मन में है बस एकांत
कहो प्रिये यह कैसा वसन्त।