बसन्त
बसन्त
शिशिर ने बाँधी अपनी चोटियाँ,
सूर्य की किरणों ने फैलाया।
दूर क्षितिज पर प्रभा का आँचल,
नदियाँ भी करती हैं कल-कल।
पुष्पों की भीनी-भीनी गन्ध से,
भरा है धरती माँ का आँगन।
सुनों सखी कितना मधुर है ना,
ऋतुराज बसन्त का आगमन।
शिशिर ने बाँधी अपनी चोटियाँ,
सूर्य की किरणों ने फैलाया।
दूर क्षितिज पर प्रभा का आँचल,
नदियाँ भी करती हैं कल-कल।
पुष्पों की भीनी-भीनी गन्ध से,
भरा है धरती माँ का आँगन।
सुनों सखी कितना मधुर है ना,
ऋतुराज बसन्त का आगमन।