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कल्पना 'खूबसूरत ख़याल'

Abstract

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कल्पना 'खूबसूरत ख़याल'

Abstract

बसन्त

बसन्त

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शिशिर ने बाँधी अपनी चोटियाँ,

सूर्य की किरणों ने फैलाया।


दूर क्षितिज पर प्रभा का आँचल,

नदियाँ भी करती हैं कल-कल।


पुष्पों की भीनी-भीनी गन्ध से,

भरा है धरती माँ का आँगन।


सुनों सखी कितना मधुर है ना,

ऋतुराज बसन्त का आगमन।


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