खिताब
खिताब
आज़ जो ढ़ेर सारे खिताब हैं
किताब के लिए।
कौन याद रखता है जब जरूरत खत्म हो जाए।
किताब नहीं तू जिंदगी का ताज है
तेरे लिए दुनिया में मेरा नाम है
बचपन से बुढ़ापे तक् तू ही तो मेरा साथ है।
शिकायत सबका,
किसका बचपन छीना, किसी का सौतन बना।
सबसे परे है तू ।
मेरे जीवन में सिर्फ तू ही तू।
सब मुझपर गुस्सा हुए, आंदोलन के लिए कतार पर खड़े हुए।
कौन कम्बक्त कहता है तू बेजान।
मेरे तकिये के नीचे तू, मेरे पाठागार से लेकर खाने की मेज तक् मेरे हाथ में तू।
मेरा अंतिम ख्वाहिश पूरी करना।
मेरे अंतिम बिदाई पे
कुछ करो न करो, मेरे किताब साथ रखना।
मेरे किताब ही मेरा खिताब है
हर समय याद रखना।
