ख़ुशी
ख़ुशी
खुशी ढूंढने निकले हो,
ग़म को चेहरे में लपेट कर,
सारे परिवार की ज़िम्मेदारी
कांधो में लिये
सोचते हो हर पल जो,
कभी देखा है
नज़रें समेट कर ?
खुशी ढूंढने निकले हो,
ग़म को चेहरे में लपेट कर।।
चले हो हताशा की राह में,
कुछ यूं सोच
कि खुशियों का जग
अब दूर नही,
ठान बैठे हो,
सबसे अलग मंज़िल पाने की
वो भी हाथों की
लकीरों को देख कर !
खुशी ढूंढने निकले हो,
ग़म को चेहरे में लपेट कर।।
अपनों के लिये
सब कुछ कर गुज़रते हो
तो खुद के लिए
कुछ करने से
क्यूँ मुकरते हो ?
ज़िन्दगी जीना है तो
हर पल खुद के लिये
एक नया मकाम तय कर,
और छोड़ दे,
अपनी सारी खुशियां ढूंढना,
ग़म को चेहरे में लपेट कर।।
