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Manoj Kumar

Inspirational

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Manoj Kumar

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खौलता पानी

खौलता पानी

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तप के अंगीठी में जला रहा अपना अभिमानी।

ऊष्मा भी फैल रहा चारो तरफ।

बुलबुले निकलते हुए आगे बढ़े।

काठ की आंच फैले चारों तरफ।


जल गई काली हुई हांडी खौल गया पानी।

कीटाणु भी जल गए जल में रह कर।

खत्म हुआ उसका अभिमानी।

समर्थ हुआ मूलरूप से उसी जगह पर रह कर।


उबाल मारे तो जाएं कहां, ढक्कन से ढक गया पानी।

गिरेगा उसी जगह टप टप खौलता पानी।

ख़ुद खौल जाएगा वो दूसरों को क्या, खौलायेगा।

जब चढ़ गई जलती हुई हांडी, तब कौन उतारेगा।



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