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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

कहां खो गए हैं हम

कहां खो गए हैं हम

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वो जब हमसे पूछती है

"कहां खो गए हो जनाब" 

तब हम मुस्कुरा कर कहते हैं 

आपके मदभरे नैनों की मय में 

आपके सांसों से निकली लय में 

आपकी जुल्फों की उलझनों में 

धक धक करने वाली धड़कनों में 

लबों पर खिलते हुए उपवन में 

संगमरमर से तराशे हुए बदन में 

हिरनी सी मतवाली चाल में 

गालों से उड़ते हुए गुलाल में 

पतली कमर के गहरे भंवर में 

प्यार के लहलहाते हुए समंदर में 

बलखाती मचलती अदाओं में 

वादियों में गूंजती मीठी सदाओं में 

बस, या और कुछ बताएं सनम 

कि तुझमें कहां कहां खो गए हैं हम. 


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