ख़ामोशी
ख़ामोशी
ख़ामोशियों का मोल ही क्यूँ
जज़्बात के बाज़ार में सबसे ज़्यादा है ?
क्यूँ ख़ामोश रहना ही बेहतर है ?
क्यूँ ख़ामोशियों को
अल्फ़ाज़ मिलने पर ही तवज्जो मिलती है ?
क्यूँ ख़ामोशियाँ
इतना ख़ामोश कर जाती है ?
क्यूँ सवाल और जवाब दोनों ही
ख़ामोशी से शुरु ख़ामोशी पे ख़त्म है ?
क्यूँ इतनी दुविधा है, क्यूँ इतना असमंजस है ?
क्यूँ मौक़े पे ख़ामोशी बुज़दिली बन जाती हैं ?
और बोल दे तो ज़िंदादिली ?
क्यूँ ख़ामोशी के भी दो पहलू है ?
क्यूँ ख़ामोशी में सन्नाटा भी
एक अजीब शोर होत
ा है ?
क्यूँ ख़ामोशी इतनी बेचैन होती है ?
क्यूँ किसी ज़ख़्म से ज़्यादा तड़पती है ?
क्यूँ ख़ामोशी के अल्फ़ाज़
अपने में इतना इतराते हैं ?
क्यूँ अपने ही क़ायदे,
क़ानून बनाए जा रही है ?
क्यूँ जो आहटें है
तुम्हारी जानी पहचानी है ?
और अल्फ़ाज़ अजनबी से ?
क्यूँ आवाज़ से रिश्ता बिखरता जा रहा है ?
ये सवाल जो तुमने इतने उठा दिए हैं
और जो तबाही तुमने मचाई हैं
उनके जवाब भी ख़ामोशी पे ही रुक गये।
"ज़ोर क़िस्मत पे चल नहीं सकता
ख़ामोशी इख़्तियार करता हूँ।"