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Surya Prakash Shukla

Abstract

4.3  

Surya Prakash Shukla

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खामोशी भी कुछ कह जाती है

खामोशी भी कुछ कह जाती है

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तेरी हर खामोशी कुछ कह जाती है

बिन जुबा ये बहोत बोल जाती है


निगाहे झुका के जो कह जाती है

वो बात सिधे दिल तक चलीजाती है


तीर चले न चले छुरी चुभे न चुभे

कुछ तो बात है इन नजरो में


जो हर धड़कनो को घायल कर जाती है

तेरी एक मुस्कुराहट कई जख्मों

को मरहम दे जाती है


तेरी हर खामोशी कुछ कह जाती है

बिन जुबा ये बहुत कुछ बोल जाती है


दूर बैठ कर जो वो इसारे करती है

सायद पास रह के वो हमसे कह न पाति है

कुछ तो बात है इन रिश्तों में


जो दूर ही सही पर कुछ कह जाती है

तेरी हर खामोशी कुछ कह जाती है

बिन जुबाँ ये बहुत कुछ बोल जाती है


सागर की लहरो को अब किनारा मिल गया है

वो कौन है मेरि ये अब इशारा हो गया है

सांसे थम सी जाती है धडकने रुक सी जाती है


जब भी नाम लेता हू उनका अपनी जुबा पे

ये महफिल दुनिया अपनी रंगीन हो जाती है


तेरी हर खामोशी कुछ कह जाती है

बिन जुबा ये बहुत कुछ बोल जाती है।


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