STORYMIRROR

Manju Saini

Inspirational

4  

Manju Saini

Inspirational

कच्ची माटी सा

कच्ची माटी सा

2 mins
381

कच्ची माटी सा तन मन मेरा

प्रीत में तुमने रंगा उसको

चढ़ी रंगत उस पर तुम रंगते रहे

कच्ची माटी सा चढ़ गया तुम्हारे प्रीत का रंग


एक घड़े समान ही मानो कुम्हार रंगा हो उसको

उसके बाहरी रूप को संवारने के लिए कि

रंगत वह गहरे असर डाले अपने चाहने वाले पर

बस उसी तरह तुमने छोड़ी प्रीत की छाप

कच्ची माटी सा तन मन मेरा

प्रीत में तुमने रंगा उसको


मेरे अन्तस् पर नेह रंग कहीं न कहीं गहरा गया

इतना गहरे रंगा की अब छाप स्वयं की पहचान 

मैं उन रंगों की छवि में देख पाती हूँ स्वयं की

मन की अन्तस् की दीवारों पर रंगों की पहचान  


कौन से रंग थे यह नही देखती बस प्रीत तुम्हारी 

अपने मे विस्मृत यादों की वादों की प्रीत तुम्हारी

तुम्हारे लिए वो रंग मात्र मन बहलाव की बात थी

कच्ची माटी सा तन मन मेरा

प्रीत में तुमने रंगा उसको


रंगों का कृत्रिम रूप समझकर तुमने उन्हें व्यर्थ 

मुझमे इस्तेमाल कर आहत किया शायद कही 

और मैंनें तो सारे रंगों को प्रीत समझ संजो रखा

वास्तविक समझ रंग डाला शायद आपने मुझकों


अपनी रूह को रंगा पाया आपकी स्नेह छाया में

अब लगता हैं मानो रंग कर खो गया मेरी प्रीत का

कल्पना भरी प्रीत में शायद कमी रही कूँची की

कच्ची माटी सा तन मन मेरा

प्रीत में तुमने रंगा उसको


उकेर नही पाए सही से दिए कुदरत जे रंग 

उन्हीं रंगों में डुबोकर मैने परत पाई थी अपनी

तूलिका मेरी सूक्ष्म कल्पनाओं को रंग नही पाई

मेरे अन्तस् की भित्तियों पर आज की प्रीत के रंग 


अनन्त कोमल भावनाओं को प्रीत में भीगे पाते हैं

रंग भर प्रीत का तुमने सार्थक किया था संबंध 

लंबे अंतराल के बाद चढ़ा है आज भी प्रीत रंग

कच्ची माटी सा तन मन मेरा

प्रीत में तुमने रंगा उसको।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational