कच्चा घर जल गया
कच्चा घर जल गया
जब कच्चा घर जलता होगा कितना दर्द होता होगा
उस घर को जो बोल नहीं सकता
अगर घर बोला करता तो कुछ ऐसे बोलता
आरक्षण की आग ऐसी जली
अपनों ने ही घर को जला दिया।
धुँवा बना कर उडा दिया मुझ को
मै जल रहा था, ना बुझाया किसी ने मुझ को
की गरीबी से बन रहा था
अभी पुरा बना भी नही
फिर जला दिया मुझ को।
मेरे नजदीक मेरे अपने भी नही
ऐसे खड़े लोग की जैसे हूँवा कुछ भी नही
अब तो हाँथो से लकीरे मिट जाती है
मेरे जल जाने के बाद अब मेरा
वजूद रहा कुछ भी नही।
मै गरीब बहूँत गरीबी से बना
मुझे कभी सजाया नही गया
मुझ में भी एक चिंगारी दुश्मन ने छोड़ दी
जब मै जला मुझे बचाया नही गया।
मै कच्चा मकान मुझे जलाता हर कोई है
मुझ से अलग कोई जलता उसे बचाता हर कोई है
दुःख ना था अपने जल ने का
चाहे जल कर राख हो जाऊँ
दुःख था इस बात का जब बन जाऊँ
मुझे जलाता हर कोई है।
की मुझ में आग लगानी थी
आँगन नही जलाना था
बच्चो का सपना है वो उसे नही मिटाना था
मुझे जलाना था तो जलाते सोक से
चाहे राख हो जाऊँ
उस किलकारी को कैसे भूल गए
उस बच्चे को नही जलाना था।
मेरे मालिक ने पाई पाई जोड़ी थी
मेरे दर्द के आघे बहूँत बड़ी थी
बारिश की बूंदों को भी रोका मैने
घवा के झोको को भी रोक मैने
जब आई मुसीबत मुझ में रहने वालों पर
अपने आप को आग के आघे झोंका मैने।
मै तो चीख भी नही सकता था
इस कदर जला दिया
की आरक्षण की आड़ में
मेरे जैसे कितने घरों को जला दिया
अपने जैसे जलते हूँवे घरों को देखकर
मै भी रोलु कुछ देर बैठ कर।
कुछ ना बचा मुझ में जालिमो ने
एक एक पत्ता मेरा जला दिया।
ये आग बुझे गी कब क्यों जलाते हो हम को
मै लकड़ी घर बन कर रहना चाहती हूँ
याद रखना मैं वो लकड़ी हूँ
एक दिन जला दूंगी तुम को !