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Vishal Sinha

Abstract

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Vishal Sinha

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कौन मुझे है देखता

कौन मुझे है देखता

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तेरी आंख की सुराख में,

मैं जल गया हूं राख में

वो कौन मुझे है देखता,

वो कौन बैठा साख पे


तुम हो एक श्वेत हंस, है

मुझ जैसे काक लाख में

समेट मुझे चिराग में,

रख दो दिए के साथ ताक पे


धूप की उबाल में, मिट्टी में ढाल के,

रख दो मुझे चाक पे

हिज्र से क्यों डरे, जीते जी क्यों मेरे,

मिलेंगे अब हम फ़िराक़ में


हमारा मिलना कोई संयोग नहीं,

ये महज़ एक इत्तेफाक़ है

तुमसे नाम मैं जोडूं,

तेरे सपने मैं बुनुं,

ये भी तो एक गुस्ताख है


तेरी आंखों में आसमान,

तेरे दिए वो निशान

तेरी मेरी वो झड़प,

ज़िन्दगी की वो तड़प,

रिश्ते सारे वो पाक है


जिससे कभी ना मैं मिला,

जिसकी करी है अर्चना,

सख्स वो बड़ा बेबाक है


रिश्तों की दौड़ में

सबसे पीछे हूं मैं खड़ा, मेरे

आगे खड़ा सलाख है

तेरी आंख की सुराख में,

मैं जल गया हूं राख में

वो कौन मुझे है देखता,

वो कौन बैठा साख पे।,


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