किधर जाते...
किधर जाते...
तेरी आंखों में ना डूबते तो किधर जाते
तेरा साथ गर मिलता, तो संवर जाते
यूं रास्तों पे आवारगी किसे पसंद थी
हाथों में तेरा हाथ गर होता, तो घर जाते
एक नूर था उसके चेहरे पर भी
थोड़ी देर और रहते, तो रौशनी से मर जाते
कुछ यादें हैं, कुछ एहसास हैं जो रातें जगाती है हमें
गर इनसे नावाकिफ होते तो जल्दी सो जाते
कुछ भी नहीं था हम दोनों के दरम्यान
कुछ होता तो नाम नहीं जुड़ जाते ?
शोहरत की चाह हमें कभी थी ही नहीं
गर होता तो पर्दे के सामने ना आ जाते ?
चाह तो हमें भी थी एक रोज छुए उसे
जिस्म में आग लिए पानी के तरफ कैसे जाते ?
कुछ तो षड्यंत्र रची होगी उस हमसफ़र ने
वरना कश्ती में सवार हम तिश्नगी से मर जाते ?

