कौन हूँ मैं....
कौन हूँ मैं....
जी रहा हूँ बस उन चंद मामलों के लिए,
जिन्हें उसने नहीं, किसी और ने लिखा है,
इसी लिए अभी तक कुछ हैरान,
और कुछ परेशान सा हूँ,
सोचता हूं क्यूं जी रहा हूं मैं,
ऐसी बेवकूफ़ियों की खातिर?
जिनका कोई ठिकाना ही नहीं।
मेरा तो बस वो रसूल ही है,
जो राह दिखाएगा मुझे,
कि कौन हूँ मैं,
और क्या ठिकाना है मेरा...
बस वो ही तो है,
जिसकी खातिर,
अब तक जी रहा हूँ मैं,
नहीं तो,
मेरा वजूद,
कुछ भी तो नहीं!