कैसे कहूँ है बेहतर, हिन्दुस्तां
कैसे कहूँ है बेहतर, हिन्दुस्तां


कह रहे हो तुम ये, मैं भी करूँ इशारा,
सारे जहां से अच्छा, हिन्दुस्तां हमारा।
ये ठीक भी बहुत है, एथलिट सारे जागे,
क्रिकेट में जीतते हैं, हर गेम में है आगे।
अंतरिक्ष में उपग्रह प्रति मान फल रहें है,
अरिदल पे नित दिन ही वाण चल रहें हैं,
विद्यालयों में बच्चे मिड मील भी पा रहें है,
साइकिल भी मिलती है सब गुनगुना रहे हैं।
हाँ ठीक कह रहे हो, कि फौज हमारी,
बेशक जीतती है, हैं दुश्मनों पे भारी।
अब नेट मिल रहा है, बड़ा सस्ता बाजार में,
फ्री है वाई-फाई , फ्री-सिम भी व्यवहार में।
पर होने से नेट भी गरीबी मिटती कहीं?
बीमारों से समाने फ्री सिम टिकती नहीं।
खेत में सूखा है और तेज़ बहुत धूप है,
गाँव में मुसीबत अभी, रोटी है,
भूख है।
सरकारी हॉस्पिटलों में, दौड़ के ही ऐसे,
आधे तो मर रहें हैं, इनको बचाए कैसे?
बढ़ रही है कीमत और बढ़ रहे बीमार है,
बीमार करे छुट्टी तो कट रही पगार है।
राशन हुआ है महंगा, कंट्रोल घट रहा है,
बिजली हुई न सस्ती, पेट्रोल चढ़ रहा है।
ट्यूशन फी है हाई, उसको चुकाए कैसे?
इतनी सी नौकरी में, रहिमन पढ़ाए कैसे?
दहेज़ के अगन में, महिलाएं मिट रही है ,
बाज़ार में सजी हैं, अबला बिक रही हैं।
क्या यही लिखा है , मेरे देश के करम में,
सिसकती रहे बेटी, शैतानों के हरम में ?
मैं वो ही तो चाहूँ, तेरे दिल ने जो पुकारा,
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दुस्तां हमारा।
पर अभी भी बेटी का बाप है बेचारा ,
कैसे कहूँ है बेहतर , है देश ये हमारा?