काश...!!!
काश...!!!
काश...!!!
काश के इंसान इतना निर्दयी न होता
काश के होती इंसानियत,
उसमें ज़रा सी ।।
जितना प्यार है उसे खुद से
उतनी ही मोहब्बत
करता वो कुदरत से अगर ।।
परवाह है उसे जितनी अपनों की
उतनी ही फिक्र गर वो
बेज़ुबानों की भी कर लेता ।।
काश के दर्द जाना होता उसने
उनका जो काटे जाते हैं जीते जी
उनकी डर भरी नज़रें, उनकी कंपन
काश के समझी होती उसने ।।
तो आज वो खुद की साँसों के लिए,
अपनों के जीवन के लिए,
दर दर न भटकता ।।
काश के रहम थोड़ा सा
वो कर लेता कुदरत पर
तो आज कुदरत भी इतनी
बेरहम न होती ।।
काश...!!!