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Rahul Gusain

Tragedy

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Rahul Gusain

Tragedy

काश मैं पैदा ना होती

काश मैं पैदा ना होती

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काश मैं पैदा ना होती

फिर पल पल, अब तक काहे रोती।।

भूल गई थी शायद , यहां पुरुष अधिक महान है

सारी लज्जा और शर्म, सिर्फ हमारे नाम है।।

डरने लगी हूं मैं, अब अंधकार के सायों से

बचाने को लाजी ,उन हैवानों की माया से।।

अब भी पाती हूं खुद को, फंसी समाज के जालों में

धर्म के नाम पर, पीस रही हूं मैं 

सालों से।। 

सोचती हूं, कब वो दिन आएगा

डर का साया भागेगा,और हमे सम्मान दे जाएगा।।

आखिर कब तक यू हीं रोऊंगी, 

डर के साये में जियूंगी।।

काश मैं पैदा ना होती ,काश मैं पैदा ना होती !!


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