माँ
माँ
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बचपन से देखी एक मूर्त
कहते जिसे हम माँ की सूरत,
थामकर उंगली ,सिखाया चलना
दिखाया पग जब कभी मैं भटका,
माँ तू कहाँ गई, मुझे छोड़ अंधियारे में
कैसे ढूंढूं मैं तेरा आँचल , बिन तेरे बसियारे में,
रोता हूँ मैं माँ, जब तेरी याद आती है
मेरा दिल बस यही कहता है,
माँ तू क्यों नहीं आती है?
क्यों रूठी बैठी है माँ ,तू आ जाना
कैसे जियूँ मैं तेरे बिना,यह बतला जा ना
कैसे जियूँ मैं तेरे बिना,यह बतला जा ना।
