काँटों की राह चलने दो
काँटों की राह चलने दो
काँटों की राह पर चलने दो
छाले पथ के पाँव में पड़ने दो
सृजन नया करने का है जुनून
इतिहास नव हमें भी गढ़ने दो
काँटों की राह पर चलने दो।
मेघ शूल बन कैसा छाया है ?
संग में रहे कैसा साया है ?
बन गुलाब कंटक को थाम थे
फूल कुचलते काँटों को पाया है
छोड़ दिया कितनी बार जाने दो
काँटों की राह पर चलने दो।
घाव छालों का पैर में तो क्या ?
दर्द सहकर भी हँस दिए तो क्या ?
आँसूओं का गिरि बन जाने दो
ज्ञान की एक सरि बह जाने दो
काँटों की राह पर चलने दो।
जिस पंथ में चले तुलसी,मीरा
पथ वही अपनाने दो
एक बार परहित में कर्म रमने दो
काँटों की राह पर चलने दो।
जहाँ भी पड़ेंगे कदम हमारे
बन जाएंगे पद चिन्ह सारे
राह नई जग में बनाने दो
झमेला जिंदगी का सहने दो
काँटों की राह पर चलने दो।
वह पथ भी क्या जहाँ कंकट न हो ?
जीवन भी क्या जहाँ संकट न हो ?
जीत क्या पर को हार की प्रतीक्षा न हो ?
अपने जीवन का संघर्ष करने दो
व्यापक संसार को मुझे देखने दो
काँटों की राह पर चलने दो।
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