कान्हा की बंसी
कान्हा की बंसी
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बंसी मेरो श्याम की, है गोपिन कौ प्रान।
बाजत यमुना तीर पर, मधुर सुनावै तान।
मधुर सुनावै तान, राग संत्रास नसावै।
नाचत गोपी ग्वाल, मस्त ह्वै कोयल गावै।
दृश्य देख अभिराम, सुर भी बने हैं अंसी।
मन कौ बहुत लुभाय, आज कान्हा की बंसी।