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Praveen Gola

Abstract

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Praveen Gola

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काली कोयल

काली कोयल

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काली कोयल फिर से बोली

आमों के पेड़ों पर डोली

कू - कू - कू का शोर मचाती

लॉकडाउन में कितना इठलाती


हम सब बंद कमरों के अंदर

वो उड़े बादलों के अंदर 

खो गए हवाई जहाज निराले 

वो गाये गीत मतवाले


हमने छीने थे जो पेड़ उससे

उसने लिए वो वापस हमसे 

अब वो बन बैठी दिलवाली 

हम मन ही मन उसे दे रहे गाली।


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