कागज की नाव
कागज की नाव
वो बारिश की बूंदें वो कागज की नाव
"छई छ्प छई छपाक छई" का चाव
दिन भर मटरगश्ती ना चिंता ना फिक्र
दादी की कहानी जिनमें परियों का जिक्र
नाव और हवाईजहाज के मालिक होते थे
मर्जी के मालिक थे बड़े ठाठ बाट होते थे
अब ना वो बरसातें हैं ना कोई नौका है
बचपना करने का अब ना कोई मौका है
मासूम बचपन की सिर्फ यादें शेष रह गई हैं
जिंदगी अब पहेलियों में उलझकर रह गई है।
