क पढ़ना किसलिये ?
क पढ़ना किसलिये ?
गरीब को
उसकी दुनिया के
रण में संघर्ष करते देख
किसी भी पढ़े लिखे
कामकाजी
देवता जैसे इंसानो से
"क" किसलिए पढ़ा था
पूछने पर मुझे
अमूमन झूठे सच्चे
जवाबों की तह में
यही एक सार मिलता है
" किसी तरह अपना और
अपनों का पेट भरने के लिए।"
ये सोच है
इस काल के शिक्षित
हमारे समाज की
मगर आज इसी समाज मे
जब मैं सरकारी विद्यालय में
गरीबी को "क" पढ़ाती हूँ
तो यही चाहती हूँ<
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कि भविष्य के
उभरते समाज मे
कभी जो कोई इनसे भी पूछे
"क" किसलिए पढ़ा था
तो यह आवाज बुलंद हो बोले
तुमको ,हमको, सबको
"जीने और जीने देने के लिए।"
ये किसी को भी
कोई वाह वाली या अनोखी बात
नहीं लगेगी।
कोई आदर्शवादी भी नहीं,
ये एक बेहद मामूली सी ,इंसानी बात है।
मैं चाहती हूँ
कि मुझसे "क" पढ़ने वाला
इंसानियत का अश्वथ बने
जो ऑक्सीजन दे
इंसानों को इंसान
बने रहने के लिए।