जूही सा तुम मुस्का देना
जूही सा तुम मुस्का देना
सुंदर सलोनी हृदय वाली, नेह भाव तुम दिखला देना
मन जब विचलित, मेरा होवे, फूलों सा तुम मुस्का देना।
दुर्गम जीवन, डगर अति क्रूर, अपने अपनों से लगे दूर
देखो कैसा ये खालीपन,रिश्तों की पोटली बनी बेनूर।
करता स्यंदन स्वार्थ सवारी, मन है हावी, माया भारी
अहम दम्भ का कवच चढ़ाये, माने है अति स्वयं को शूर।
विकल विकट अब मन आँगन में, प्रेम सुधा रस बरसा देना
मन जब विचलित मेरा होवे, फूलों सा तुम मुस्का देना।
मन बैरागी, है एकाकी, लगता है सूनेपन से डर
जब भी तेरी याद सताती, आँखें जाती अँसुओं से भर।
अपने किस्सेे किसे सुनाऊँ, किसे वेदना- हृदय दिखाऊँ
मानव, मानव का है दुश्मन, लगता सारा मंज़र ज़र-ज़र।
बंजर हिय में,अब तुम,मेरे,सुमन प्रीत के, महका देना
मन जब विचलित मेरा होवे, फूलों सा तुम मुस्का देना।
