जो बीज हमने बोए
जो बीज हमने बोए
अरे !
बहुत सालो बाद मिली हो, घर आयी हो शायद ?
यूँ ही चली गई थी एक दिन, मैंने मनाया तो था,
झिंझोड भी दिया था तुम्हें पकड़ कर,
लाल कुसुम जो हाथ मे थे तुम्हारे, गिर गए थे भरभराकर।
सुनो, वहीं उस जगह हम मिलते थे
जहां मधुमालती के फूल खिलें हैं इस वर्ष वहाँ।

