यात्रा वृतांत "चामासारी"
यात्रा वृतांत "चामासारी"
अल सुबह 4:30 बजे का अलार्म बजने से पहले ही नींद का खुल जाना अवश्य ही यायावर जुनूँ की निशानी होगी अन्यथा क्यों कोई यूँ ही अपनी सूर्य पूर्व प्रभात को, जब निद्रा अपने उच्च पर और सर्दियाँ नवंबर कि देहरी पार कर रहीं हो, खराब नहीं करना चाहेगा l
फिर वही शहंशाही (आश्रम) (शहंशाहीआश्रम देहरादून का एक स्थान है) और फिर वही हम, 6:30 प्रातः मित्र, बंधु व गण, कुल गिनती में 9 साथी चल पड़े l प्राथमिक 2.25 km रास्ता वही जिसका जिक्र मेरे पूर्व के विवरण में मिलेगा उसके पश्चात इस बार झड़ी-पानी की ओर बाएँ न मुड़ हम सीधे चल पड़े l यह रास्ता चामासारी गांव की ओर जाता है और अत्यधिक खूबसूरत है l
देहरादून की ऋषिपर्णा, जिसे आजकल रिस्पना नदी भी कहते हैं का उद्गम इसी स्थान की तरफ से होता है, अतः कुछ दूर चलने पर आपको नदी की कल कल सुनायी देने लगती है, पहाड़ियों से गिरते झरने, जगह जगह पत्थरों से रिसता हुआ पानी और पत्थर में कुलांचे मारती नदी, यहीं कुछ समय पूर्व जब सखी कविता ने इस स्थान पर शांत रह कर पक्षियों का कलरव भी सुनवाया था तो सब मिला जुला कर ये जगह स्वर्गिक एहसास देने लगा है। काकड़ की भौंकने की आवाज दूर तक सुनायी दे रही थी।
एक-दो बार पहले मैंने यहां पर जंगली जानवर जैसे गहरे काले सांप व लोमड़ी भी देखे हैं , इसलिए कोशिश करें कि आप यहाँ अकेले ना ही जायें। भालू व गुलदार की बाते अक्सर सुनी है पर सामना नहीं हुआ, चाहता भी नहीं हूँ ।
कुछ दूरी पर एक पुल पड़ता है जहां पर कुछ पल विश्राम किया जा सकता है, बस नदी से दायीं ओर मुड़ कर यहाँ से असल चढ़ाई शुरू होती हैl बहुत तीखी और लगातार ऊंचाई आपको नाप भांप लेती है, और मेरा मानना है कि आप या तो जोश के अतिरेक या लगातार अभ्यास के चलते ही इसे पूरा करना चाहेंगे l इसके आगे पक्का रास्ता खत्म सा ही हो जाता है और आपको यहां से कच्चे पगडंडी और सीढ़िदार खेतों के बीच से ही गुजरने का अनुभव होगा । पानी की उपलब्धता की वज़ह से यहां खेती अच्छी होती है, इस जगह का नाम भी खेतवाला ही हैl यहां से पूरा रास्ता कच्चा और पूर्णतः पैदल मार्ग ही है, 1500 मीटर पर बाँज के वृक्ष नजर आने लगे 1760 मीटर की कड़ी ऊंचाई पर हम चामासारी के डाडीधार क्षेत्र में स्थित यात्री प्रतीक्षालय में पहुंचेl निशब्द करने वाली खूबसूरत जगह और सुहाने मौसम के साथ चारो तरफ ऊंची पहाड़ियां, पूर्व में सहस्त्रधारा और उत्तर की ओर मसूरी का पिछला हिस्सा दिख रहा था l बादलों ने समा बांध दिया और मित्र प्रतीक ने अपने मोबाइल से ही कुछ उत्कृष्ठ तस्वीरें उतार दी। यहीं पर विशाल नेगी, मोहन थापा और नीलम पंत व कांडपालजी ने मिलजुलकर तर नाश्ता करा के तबीयत हरी कर दी l दीपा की लैमन चाय के क्या कहने l
लगभग आधा घंटा विश्राम के बाद हम वापसी को कूच करते किंतु भाग्य और साथियों को ये मंजूर नहीं था अतः वहाँ से दूसरी ऊंच-नीची पगडण्डी पकड़ के हम बाकायदा 6 किमी दूर माॅसी फाॅल (जिसका विवरण किसी अन्य वृतांत में) की अत्यधिक कठिन चढ़ायी चढ़ कर बाॅर्लौगंज पहुंचे, अब तक हम 15 किमी चल चुके थे, रास्ते में इस बार नए मित्र कर्नल संजय पंत एवं श्रीमति आभा पंत भी मिले, हर्ष मिश्रित सुखद आश्चर्य हुआ, कुछ समय से साथ चलने का कार्यक्रम था किंतु बन नहीं पा रहा था ।
हम अभी भी गंतव्य से 5 कि.मी दूर थे, परंतु साथ और साथी अनोखे हो मन में मस्ती हो कोई दूरी, दूरी नहीं l
अंततः 20 कि.मी पैदल चल हम अपराह्न 3 बजे वापस पहुंचे ,पैर थक रहे थे और घर अभी 15 कि.मी और था, क्या फर्क पड़ता अब तो वाहन था....
