जन्मदिन
जन्मदिन
फिर से गुजर गया और एक साल ..
फिर से भूत बन गया कुछ साल ...
फिर से घटने लगी मेरी उम्र की राहें
फिर से मैं बढ़ चली मौत के और करीब
पिछले साल की कुछ बधाइयों के साथ
फिर से पीछे छोड़ दिया ३६५ दिन को
कुछ नई बात सीखनी थी
कुछ नया काम करना था
पर शायद बहत कुछ ऐसे हीं रह गया
जीवन के कुछ साल फिर से घट गए
कुछ नई शिक्षा के साथ
कुछ अपने थे नकाब के पीछे
कुछ अपने पीछे से थे छुरा पकड़ के
कुछ अपने थे हमारी अस्थित्व मिटाने के लिए
वक़्त के साथ उतर गया उनका नकाब
दर्द हुआ , पर खुशी मिली
कुछ अपनों की असलियत जानने ने बाद
कुछ खोया ,
तभी बहत कुछ मिला
गुजरा हुआ साल गुजर गया फिर से
पर कुछ सीखा के गया
ये जन्मदिन फिर से आ गया
फिर से कुछ बताने के वास्ते
फिर से गुजर गया और एक साल
फिर से भूत बन गया कुछ साल
फिर से मैं बढ़ चली मौत की और करीब.....
और करीब.............
ऐसे ही बीत गया फिर से और एक जन्मदिन.....।
