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Neelam Bisht

Abstract

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Neelam Bisht

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जंक लगा ताला

जंक लगा ताला

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दरवाजे पे जंक लगा ताला

मुझे सपने में आकर कहने लगा !


आखिर कब तक यूहीं बन्द रहूंगा में,

कभी फुर्सत मिले तो खोल ले मुझे,


जंक पड़े पड़े खोखला होता जा रहा हूं

दरवाजे पे तेरे जंक खाकर लटका हुआ हूं।


और कितनी देर लगेगी तुझे आने में,

आके मुझपे चाबी घूमने में।


में इंतजार में तेरे और कितना ख्याल रखूं,

तेरे इस खंडहर बने घर का,


कभी आके तो खोल मुझे,

जंक खाकर अब में गिरने लगा हूं।


दरवाजे पे जंक लगा ताला

मुझे सपने में आकर कहने लगा।


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