जितनी दफा मैं देखूँ तुझे
जितनी दफा मैं देखूँ तुझे


जितनी दफा देखूँ तुझे
याद आता वो हर पल
जो बिताए तेरे साथ
वो ख़ास ना हो
दुनिया की नज़र से।
कुछ बात ना हो उनमें
फिर भी याद कर उन्हें
चेहरे की कोई खोई मुस्कान
लौट आती हैं।
एक नई जान सी जग उठती है
जितनी दफा देखूँ तुझे
नया लगे तू मुझे हर दफा
मेरी आंखें तेरे आंखों में
कहीं गुम सी हो जाती है।
लबों पे ठहरा
एक खोया सा शब्द
बाहर आने को
आतुर हो जाता है।
और अगर इस विस्तार का
सार कहूं तो
जितनी दफा मैं देखूँ तुझे
दिल हर बार जोर से कहता है।
हां ये वही हैं
जिसके पास तू महफूज़ है।