ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी तो मिल रही रोज पर गमों की
इसमें ज्यादा मिलावट है उदासी से भरा मन,
फिर भी चेहरे पर सजा रखी मुस्कुराहट है
थोड़ी सी तकलीफ कहीं वहीं ना जाने क्यूं थोड़ी–
सी घवराहट है सबको चेहरे पर ख़ुशी दिखी पर
जो गमों को छुपा सके मुस्कान रूपी वो करी झूठी सजावट है।
ज़िन्दगी तो मिल रही हर रोज पर गमों की इसमें ज्यादा मिलावट है
ज़िन्दगी के ना जाने कितने रंग पर झूठ और फरेब की इसमें
ज्यादा रँगावट है खोजने निकले तो कहीं मिला नहीं,
विश्वास की बाजार में आज थोड़ी गिरवाट है
मेरी ज़िन्दगी का ये सच बेशक आप के लिए ये कोई कहावत है
ज़िन्दगी तो मिल रही हर रोज पर गमों की इसमें ज्यादा मिलावट है।
रिश्ते कुछ पक्के धांगो से बुनें, पर सबको दिखती झूठी उनकी बुनावट है
कोशिश करते करते थक चुके कदम अब महसूस होती कुछ हल्की थकावट है
फिर भी ये दिल हारा नहीं क्या करे रिश्तों के प्रति थोड़ी झुकावट है
अब कहने को कुछ बचा नहीं कोई कहानी बयां करती ये मेरी लिखावट है।
ज़िन्दगी तो मिल रही हर रोज पर गमों की इसमें कुछ ज्यादा मिलावट है।