जिंदगी तुमने
जिंदगी तुमने
उठक बैठक कर जिंदगी तुमने
शांत चित्त ना रहने दिया
रोज नई चुनौती देकर
हर सपने को तोड़ दिया।।
प्रेम सिखाने निकले थे हम
शत्रुता का विष क्यूँ घोल दिया
भाव को कैसे बदल चलें
सवालियाँ निशान जो लगा दिया।।
बंधुत्व का पाठ पढ़ाते हम तो
मुजलिमों सा क्यूँ व्यवहार किया
हँसमुख हमारा चेहरा सुंदर
पलभर में उतार दिया।।
वफा भी जिनसे चाही हमनें
धोखा उसनें हमकों दिया
स्वल्प ज्ञान का अहं किया तो
अथाह ज्ञान से दूर किया
तारम्यता तोड़ दिल-ओ-दिमाग की
असामजस्य में डाल दिया
क्या सही है क्या गलत है
ना कोई उपाय भी दिखाई दिया।।