जिंदगी-एक पहेली
जिंदगी-एक पहेली
जिंदगी की बात ही जनाब अलग है
कभी ग़म है , कभी भ्रम तो कभी सुुुुलग है।
बहुत कुछ सिखाए , बहुत कुछ बताए
तुम्हारा तुमसे ही परिचय कराए।।
पग -पग पर ज्ञान बिखरा है , समेट लो
क्या पता कब चमत्कार से भेंट हो।
इसके अनसुलझे पहेली को समझना चाहूँ मैं
क्या इशारें हैं वो भी परखना चाहूँ मैं
अच्छा ,बुरा सब देेेखा है, और क्या
ये दिखलाए वो भी देखना चाहूँ मैं।।
गाथा है ये विचित्र, बहुत पुुुुरानी बहुत अजीब
जाओगे दूूर कैसे, होगे तुम इसके और करीब
क्यों न मान लें इसी को अपना नसीब।।
