जीवन की सच्चाई
जीवन की सच्चाई
जीवन की यह नैय्या ले रही हिचकोले।
हिचकोले में मन डोले कभी तन डोले।।
डोले सारे जिंदगी पकड़ के पगडंडी।
मिले घूमती मंदिर कभी सब्जीमंडी।।
सब्जीमंडी के कद्दू से ले पृथ्वी का भूगोल।
बात एक ही समझाए जीवन है गोल गोल।।
गोल है ऐसा, रुलाये जीवन को जीवनभर पैसा।
पाकर धनवान भी दुःखी, देखो लाइफ है कैसा।।
लाइफ देखो ऐसा, एक अनपढ़ मजे ले रहा।
शिक्षित काले अक्षर से भैंस बराबर हो रहा।।
भैंस बराबर हो रहा भूल गया जीना जीवन।
आज की खुशियाँ भुलाके देखे कल का गम।
देखे कल का गम, भविष्य की करे चिन्ता।
जल उठे क्षण में चिता, जो सुने अपनी निन्दा।।
अपनी निन्दा ना सहे दोष मढ़े दूजे पर।
दूसरों को परखने में मन उड़ बैठा छज्जे पर।
उड़ बैठा छज्जे पर दिल गुटूर गुटूर करे।
खुद का ना ध्यान रखकर दूजे पे ध्यान धरे।।
ध्यान धरे ना ईश पर जिसने रचा जग संसार।
उसकी माया में उलझा सुख दुःख का करे व्यापार।।
सुख दुःख के व्यापार में जीवन का लक्ष्य गुल।
थोड़े से धन प्रतिष्ठा में अज्ञानता आई फुल।।
अज्ञानता आई फुल, ज्ञानियों की बात ना विचारी।
कहे सब वेद ग्रन्थ यह जीवन आने वाले की तैयारी।।
आने वाले की तैयारी तो खुद को जानो मानव।
अपने पराये की परख में तो बने रहोगे दानव।।
बने रहोगे दानव यूँ तो सिर्फ लेगी जन्म बुराई।
खुद की परख करना ही जीवन की है सच्चाई।