जीवन का जहर
जीवन का जहर
सन्नाटे को चीर रही थी, उसकी चीखें उस रात को,
इस बीच वह भूल गया था अपने आप को।
मांग रहा था वो ज़हर जिसका वह आदी था,
वह खुद ही कारण था अपनी बर्बादी का।
यह लत उसे उसके दोस्तों ने लगवाई थी,
जो लाख चाहने के बाद भी छूट न पाई थी।
इस कदर फंस गया था वह अपने ही जाल में,
समीप ला रहा था अपना ही काल वह।
अगर सुनकर अब भी रूह कांपती है,
तो दूर जाओ क्योंकि अब तुम्हारी बारी है।
न डूब ना तुम इस नशे में,
क्योंकि तुम अपने परिवार के चिराग हो
चमक उठोगे अंधेर में।