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Muskan Kotwal

Others

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Muskan Kotwal

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बेजान दोस्त

बेजान दोस्त

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वो जो चलती थी साथ मेरे,

बनकर एक साथी उस अंधेरे।


डर को चीर कर चलने की आई थी ताकत,

साथी के रूप में पाई थी मैने हिम्मत।


उजाला ले जा रही थी अपने संग उस परछाई को,

तभी एक साथी के जाने का दुख मना रहा था मै


इसी बीच न जाने मेरे आंसू पड़े,

कपोलों से छलकते समय एक आवाज़ कर गिरे।


तभी उस आवाज़ ने भटका दिया मेरा मन,

जब देखा तो पता चला न था मै अकेला साथ थी मेरे मेरी गूंज।


डर को चीर कर चलने की आई ताकत,

साथी के रूप में फिर से पाई थी मैने हिम्मत।


लोग तो छोड़ देते है साथ,

तब उसे आती है अपने बेजान दोस्तों की याद।


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