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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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जीवन हो या समाज

जीवन हो या समाज

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समाज हो या जीवन

उसमें हलचल

क्रिया भी हो सकती है

और प्रतिक्रिया भी।


क्रिया हो और

उसकी दिशा सकारात्मक हो

मानवीय हो

प्रकृतिमय हो जाने की हो तो

जीवन, जीवन का अर्थ

प्राप्त कर लेता है


आजकल तो

जीवन पर

प्रतिक्रियाओं का प्रभाव है

और उसे आकर्षक बनाया जा रहा है

अतीत के सकारात्मक

उदाहरणों के सम्बल से

जब कि जीवन वर्तमान में है

और इसे

सक्रिय होना चाहिये

प्रतिक्रियाओं की बाढ़ में भी।


इस एहसास के साथ कि

हम भी मनुष्य हैं

तुम भी मनुष्य हो

और अपनी मनुष्यता में जीना

प्रकृति के उपहार का

सम्मान करना है

सदुपयोग करना है।


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