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Shivam Bajpai

Abstract

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Shivam Bajpai

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जीने की वजह

जीने की वजह

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बेखबर सा मैं था तुझसे

बेखबर सी थी तू मुझसे

हुई जो ये इत्तेफाक-ए-मुलाकात,

जैसे जीने की वजह दे गई।


अलफ़ाज़ जो तूने कहे ना थे

अलफ़ाज़ जो मेरे बयां ना हुए

ये अनकही गुफ्तगू ही सही,

जैसे जीने की वजह दे गई।


वक़्त जो मेरा रुक सा गया

ख्यालों मे मैं गुम सा गया

उन ख्यालों में तेरी वो गुस्ताखी,

जैसे जीने की वजह दे गई।


इशारें जो करती थी तेरी नज़रें

आशिक़ी के लिखे थे मैंने नग्मे

हुज़ूर-ए-खातिर तेरी मस्कुराहट,

जैसे जीने की वजह दे गई।


फिरता था तेरी गलियों में आंवारा

खाली सी ज़िन्दगी को तूने संवारा

उस खालीपन में तेरी वो आहट,

जैसे जीने की वजह दे गई।


इतना तू मेरा कर ले यकीन

इश्क ये मेरा है जो हसीन

वजह है तू, और तेरा ही होना,

जैसे जीने की वजह दे गई।


बंजर सा जो था मेरा अफ़साना

ख्वाबों का था इसमे तेरा घराना

लगी जो आदत, बुरी ही सही,

जैसे जीने की वजह दे गई।


कम्बख्त ये मोहब्बत हुइ जो मुझको

जुदा जो होना पड़ा फिर तुझको

भलाई है पत्थर से दिल लगाना,

क्यूंकि अब तू जीने की वजह ले गई।


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