खुशनसीब हम
खुशनसीब हम
खुशनसीब हैं हम
कि सिराहने अपने छत है
अपनों से आए खत हैं
कि खाने को रोटी है
चिंता नहीं होती है
कि कब ना जाने भूखा रहना पड़े
या कब ना जाने दूर जाना पड़े।
खुशनसीब हैं हम
कि नींद पूरी होती है
और चाय सामने होती है
कि हम अपने घरों में हैं
वहीं कुछ सड़कों में हैं
कि शायद घर कुछ पास सा लगने लगा
मजदूर कमा कर भी भूूखा रहने लगा।
खुशनसीब हैं हम
पर वो क्यों नहीं
कौन सा इंसाफ उनको भूखा सोने देता है
कौन सा इंसाफ पैदल जाने पर मजबूर कर देता है।
ज़रा चुभती सी ये बात है
कि कैसे ये हालात है
कि हमारा अन्नदाता ही आज भूखा है
क्यों हमारा भगवान उनसे रूठा है।
इस संकट के बाद भी
खाना है, हम ज़िंदा हैं
खुशनसीब हैं हम
क्योंकि किसान हमारा ज़िंदा है।