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Shaurya Parmar

Abstract

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Shaurya Parmar

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जीना चाहिए।

जीना चाहिए।

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हो दु:खो के घूंट,

धीरे से पीना चाहिए,

कैसी भी हो जिंदगी,

धीरे से जीना चाहिए,


अब पसंद,ना पसंद,

कौन पूछता है ?

अब हसे या रोए,

कौन देखता है ?

जिंदगी चाहे एक हो,

बिना हृदयवाला सीना चाहिए,


स्मशान तक अपने आते हैं,

अब सिर्फ नींद में सपने आते हैं,

उठो, जागो और भागो,

पैसा, पैसा, पैसा, बस पैसा,

संवेदन से परे मन हो,

और जीवन स्नेह बिना चाहिए,


सपनों से, कहूं तो क्या कहूं ?

में अब कहा हूं ?

सिर्फ सोचता हूं तेरे बारे में,

वरना, मैं भी मेरा कहा हूं!

ज्यादा ही सरल है ये दिल,

साला थोड़ा तो कमीना चाहिए,


हो दु:खो के घूंट,

धीरे से पीना चाहिए,

कैसी भी हो जिंदगी,

धीरे से जीना चाहिए।


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